Don't Put These Things in Purse-पर्स में मत रखिए यह वस्तुऍं
पैसों से जुड़ी समस्याओं को दूर करने के लिए शास्त्रों के अनुसार कई कार्य और नियम बताए गए हैं। इन नियमों का पालन करने पर व्यक्ति के जीवन में कभी भी धन की कमी नहीं रहती है। सामान्यत: सभी के पास पर्स अवश्य ही रहता है। पर्स और हमारी आर्थिक स्थिति का गहरा संबंध है। यदि पर्स व्यवस्थित और स्वच्छ होगा तो यह आपकी आर्थिक स्थिति को मजबूत करता है।
रुपए-पैसों को सुरक्षित और व्यवस्थित रखने का कार्य हमारे पर्स बखूबी निभाते हें। हर परिस्थिति में आपके नोट पर्स में सही ढंग से रखे रहते हैं। जिससे उनके कटने या फटने का डर नहीं रहता। पर्स में पैसा रखा जाता है अत: इस संबंध में वास्तु द्वारा कई महत्वपूर्ण टिप्स दी गई हैं। जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति को भी धन की कमी का एहसास ही नहीं होता है।
वास्तु के अनुसार पर्स में ऐसी वस्तुएं हरगिज न रखें जो नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती हैं। पर्स में किसी भी प्रकार के बिल या भुगतान से संबंधित कागज नहीं रखने चाहिए। इसके साथ ही पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु भी न रखें। जो वस्तुएं फिजूल हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है उन वस्तुओं को तुरंत ही पर्स से बाहर कर देना चाहिए। इनके अतिरिक्त पर्स में धार्मिक और पवित्र वस्तुएं रखें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न होता है।
रुपए-पैसों को सुरक्षित और व्यवस्थित रखने का कार्य हमारे पर्स बखूबी निभाते हें। हर परिस्थिति में आपके नोट पर्स में सही ढंग से रखे रहते हैं। जिससे उनके कटने या फटने का डर नहीं रहता। पर्स में पैसा रखा जाता है अत: इस संबंध में वास्तु द्वारा कई महत्वपूर्ण टिप्स दी गई हैं। जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति को भी धन की कमी का एहसास ही नहीं होता है।
वास्तु के अनुसार पर्स में ऐसी वस्तुएं हरगिज न रखें जो नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती हैं। पर्स में किसी भी प्रकार के बिल या भुगतान से संबंधित कागज नहीं रखने चाहिए। इसके साथ ही पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु भी न रखें। जो वस्तुएं फिजूल हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है उन वस्तुओं को तुरंत ही पर्स से बाहर कर देना चाहिए। इनके अतिरिक्त पर्स में धार्मिक और पवित्र वस्तुएं रखें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जिन्हें देखकर हमारा मन प्रसन्न होता है।
खाने-पीने की चीजें भी पर्स में नहीं रखना चाहिए। जैसे पाउच, चॉकलेट्स आदि। पर्स में दवाइयां भी नहीं रखनी चाहिए।
घरों में देवी-देवताओं का मंदिर अवश्य ही होता है। जो व्यक्ति प्रतिदिन नियमित रूप से घर के मंदिर में पूजा-पाठ करता है उसे सभी सुखों की प्राप्ति होती है। हर सुबह इनकी पूजा करनी चाहिए लेकिन यदि आप घर से कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर जाते हैं तो घर के देवी-देवताओं का पूजन और दर्शन नहीं कर पाते हैं।
यदि आप कहीं बाहर जाते हैं तब घर के मंदिर में रखी देवी-देवीताओं की मूर्तियों की पूजन और दर्शन नहीं हो पाता है। ऐसे में आपको अपने पर्स में मंदिर में रखें देवी-देवताओं की फोटो रखनी चाहिए। पर्स में फोटो रखेंगे तो बाहर रहने पर भी आप घर के भगवान के दर्शन अवश्य कर सकेंगे। ऐसा करने से भगवान की कृपा सदैव आप पर बनी रहेगी।
पर्स में घर के देवी-देवताओं की फोटो रखने से आपके साथ हमेशा ही सकारात्मक और दैवीय ऊर्जा रहेगी। जिससे आपको सभी कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। पैसों की समस्या नहीं रहेगी। इसके साथ वातावरण में मौजूद नकारात्मक ऊर्जा या शक्तियां आप पर बुरा प्रभाव नहीं डाल सकेंगी।
ध्यान रखें पर्स में देवी-देवताओं की फोटो रखें तो खुद को अपवित्र स्थानों से दूर रखें और अधार्मिक कर्मों से बचें। पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु न रखें।
देवी लक्ष्मी के पूजन में रखे हुए गौमती चक्र को पूजा के बाद पर्स में रखना बहुत ही शुभ माना जाता है।
महालक्ष्मी की प्रतीक पीली कौडिय़ां पर्स में रखी जा सकती है। यह भी धन को आपकी ओर आकर्षित करती हैं।
आप के मूलांक और आप के पर्स में रखे नोट के रंग, सिक्कों में प्रयुक्त धातु आदि के मध्य सामंजस्य बैठा कर भी धन वृद्धि की जा सकती है. यदि आप चाहते हैं कि आपका वॉलेट हमेशा रुपयों से भरा रहे तो इन उपायों का लाभ ले सकते हैं:सभी चाहते हैं कि उनका पर्स हमेशा पैसों से भरा रहे और फिजूल खर्च न हो। ज्यादा पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत के साथ अच्छी किस्मत भी महत्व रखती है। कुछ परिस्थितियों में मेहनत के बाद भी पर्याप्त धन प्राप्त नहीं हो पाता या खर्चों की अधिकता की वजह से बचत नहीं हो पाती।
पैसा रखने के लिए सभी के पास पर्स रहता है, अत: पर्स के संबंध में एक सटीक उपाय है जिसे अपनाने से कभी भी आपका पर्स खाली नहीं रहेगा। साथ ही फिजूल खर्चों में कमी आएगी। इस उपाय में आपको किसी भी शुभ मुहूर्त या अपने जन्म दिन पर माता-पिता से एक नोट पर केसर से तिलक लगवाएं। नोट कैसा भी हो सकता है बड़ा या छोटा। केसर का तिलक लगवाने के बाद माता-पिता के चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद प्राप्त करें।
आपके अपने मूलांक अनुसार ऐसा हो आपका पर्स
मूलांक 1 (1,10,19,28)
अपने लाल रंग के वॉलेट या पर्स में एक 100 और 20 रुपये के एक एक नोट तथा 1 रुपये के सात नोट को नारंगी रंग के कागज में रखें. एक ताम्बे का सिक्का भी रखें।
मूलांक 2 (2,11,20,29)
अपने सफेद रंग के वॉलेट या पर्स में एक रुपये के दो और 20 रुपये का एक नोट चाँदी की तार में लपेट कर रखें. एक चान्दी का सिक्का भी रखें.
मूलांक 3 (3,12,21,30)
अपने पीले या मेहन्दी रंग के वॉलेट या पर्स में दस रुपये के तीन नोट तथा 1 रूपये के तीन नोट को पीले रंग के कागज में रखें. एक गोल्डन फॉइल का तिकोना टुकडा भी रखें.
मूलांक 4 (4,13,22,31)
अपने भूरे रंग के वॉलेट या पर्स में दस रुपये के दो और 20 रुपये का दो नोट चन्दन का इत्र लगाकर रखें. अपने घर की चुट्की भर मिट्टी भी रखें.
मूलांक 5 (5,14,23)
अपने हरे रंग के वॉलेट या पर्स में पाँच रुपये का एक और 10 रुपये के पाँच नोट एक हरे कागज में रखें. एक बेल का पत्ता भी रखें.
मूलांक 6 (6,15,24)
अपने चमकीले सफेद रंग के वॉलेट या पर्स में पाँच सौ रुपये का और 100 रुपये का एक एक नोट तथा 1 रुपये के छ: नोट को सिल्वर फॉइल में रखें. एक पीतल का सिक्का भी रखें.
मूलांक 7 (7,16,25)
अपने बहुरंगी वॉलेट या पर्स में एक रुपये के सात और 20 रुपये का एक नोट नारंगी रंग के कागज में रखें. एक मछली का चित्र अंकित किया हुआ सिक्का भी रखें.
मूलांक 8 (8,17,26)
अपने नीले रंग के वॉलेट या पर्स में 100 रुपये का एक और 20 रुपये के चार नोट नीले रंग के कागज में रखें. एक मोर पंख का टुकडा भी रखें.
मूलांक 9 (9,18,27)
अपने नीले और नारंगी रंग के वॉलेट या पर्स में पाँच रुपये का एक और दो रुपये के दो नोट चमेली का इत्र लगे नारंगी रंग के कागज में रखें. एक पीतल का सिक्का भी रखें.
यदि आप भी किसी ग्रह बाधा से पीडि़त हैं और आपके पर्स में अधिक समय तक पैसा नहीं टिकता तो निम्र उपाय करें
किसी भी शुभ मुहूर्त या अक्षय तृतीया या पूर्णिमा या दीपावली या किसी अन्य मुहूर्त में सुबह जल्दी उठें। सभी आवश्यक कार्यों से निवृत्त होकर लाल रेशमी कपड़ा लें। अब उस लाल कपड़े में चावल के 21 दानें रखें। ध्यान रहें चावल के सभी 21 दानें पूरी तरह से अखंडित होना चाहिए यानि कोई टूटा हुआ दान न रखें। उन दानों को कपड़े में बांध लें। इसके बाद धन की देवी माता लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजन करें। पूजा में यह लाल कपड़े में बंधे चावल भी रखें। पूजन के बाद यह लाल कपड़े में बंधे चावल अपने पर्स में छुपाकर रख लें।
ऐसा करने पर कुछ ही समय में धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी। ध्यान रखें कि पर्स में किसी भी प्रकार की अधार्मिक वस्तु कतई न रखें। इसके अलावा पर्स में चाबियां नहीं रखनी चाहिए। सिक्के और नोट अलग-अलग व्यस्थित ढंग से रखे होने चाहिए। किसी भी प्रकार की अनावश्यक वस्तु पर्स में न रखें। इन बातों के साथ ही व्यक्ति को स्वयं के स्तर भी धन प्राप्ति के लिए पूरे प्रयास करने चाहिए।
अपनी राशी के अनुसार रखे पर्स का रंग…लाभ होगा जेसे
मेष,सिंह, और धनु राशि वाले अपना पर्स लाल या नारंगी रंग का रखे. तो लाभ होगा
वृष,कन्या, और मकर राशि वालों को भूरे रंग का पर्स तथा मटमैले रंग का पर्स बहुत फायदा पंहुचायगा
मिथुन,तुला, और कुम्भ राशि वाले यदि नीले रंग व सफ़ेद रंग का प्रयोग करते है तो मानसिक स्थति के साथ साथ धन के के आगमन के रास्ते भी खुलेंगे.
कर्क,वृश्चिक, और मीन राशि को तो हमेशा हरा रंग और सफ़ेद रंग का प्रयोग अपने पर्स में करना लाभदायक रहेगा.
वास्तु अनुसार रखें अपना पर्स
घर का वास्तु, ऑफिस का वास्तु, आपकी कार का वास्तु, हर चीज में जब आप वास्तु का ध्यान रखते आएं हैं तो पर्स में वास्तु का ख्याल क्यों नहीं रखा जा सकता? जिस तरह हमारे आसपास का वातावरण हमें प्रभावित करता है। उसी प्रकार हमारा बैग या पर्स भी हमें प्रभावित करता है।तो आइये जानते हैं कि कैसे अपने बैग को वास्तु के अनुसार रखकर उसमें धन की बरकत बड़ा सकते हैं।
सभी चाहते हैं कि उनका पर्स हमेशा पैसों से भरा रहे और फिजूल खर्च न हो। ज्यादा पैसा कमाने के लिए कड़ी मेहनत के साथ अच्छी किस्मत भी महत्व रखती है। कुछ परिस्थितियों में मेहनत के बाद भी पर्याप्त धन प्राप्त नहीं हो पाता या खर्चों की अधिकता की वजह से बचत नहीं हो पाती।
हमारे जीवन से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण बातों का संबंध वास्तु से है। पर्स में पैसा रखा जाता है अत: इस संबंध में वास्तु द्वारा कई महत्वपूर्ण टिप्स दी गई हैं। जिन्हें अपनाने पर व्यक्ति को भी धन की कमी का एहसास ही नहीं होता है।
जो वस्तु नकारात्मक ऊर्जा फैलाती हैं उन्हें हमारे आसपास से हटा देना चाहिए। क्योंकि इनसे हमारे सुख और कमाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। आय बढ़ाने फिजूल खर्चों में कमी करने के लिए पर्स का वास्तु भी ठीक करने की आवश्यकता होती है।
कुछ लोग पर्स में ही चाबियां भी रखते हैं, चाबियां रखना भी अशुभ ही माना जाता है इसके लिए पर्स में किसी भी प्रकार की अपवित्र वस्तु भी न रखें। जो वस्तुएं फिजूल हैं, जिनका कोई उपयोग नहीं है उन वस्तुएं तुरंत ही पर्स से बाहर कर दें।
आखिर पर्स का ही वास्तु क्यों?
क्योंकि मेरे विचार से हम सब के जीवन में पर्स एक महत्वपूर्ण भूमिका रखता है. जैसे मासिक वेतन मिला तो गया पर्स में अर्थात पूरे महीने की आमदनी को हमने पर्स के हवाले कर दिया. वस्तुओं के खरीद-फरोख्त में भी पर्स सामने आता है किसी वस्तु को खरीदने से नुक्सान हुआ तो किसी में फायदा हुआ या कभी पर्स पाकेटमार ने पार कर दिया तो कभी पर्स में रखे धन की बरकत खत्म हो जाती है सुबह रुपये रखो और शाम आते ही पर्स खाली. इन्हीं बातो को ध्यान में रख कर यदि हम पर्स को वास्तु के नियमों के अनुसार रखे तो हमे पर्स के द्वारा भी बरकत मिल सकती है और धन के नुक्सान से बच सकते है.
पर्स में सिक्के और नोट दोनों को ही अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए। इसके अलावा पर्स में मृत व्यक्तियों के चित्र रखना भी शुभ नहीं माना जाता है। अत: इस प्रकार के चित्रों को भी पर्स में नोटों के साथ नहीं रखें।
पर्स में संत-महात्मा के चित्र रखे जा सकते हैं। यदि कोई संत या महात्मा देह त्याग चुके हैं तब भी उनके चित्र या फोटो पर्स रखे जा सकते हैं क्योंकि शास्त्रों के अनुसार देह त्यागने के बाद भी संत-महात्माओं को मृत नहीं माना जाता है। पर्स में धार्मिक और पवित्र वस्तुएं रखें, जिनसे सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और जिन्हें देखकर मन प्रसन्न होता है ।
इन्हें भी रुपए-पैसों से अलग ही रखना शुभ रहता है। पर्स में नोट या सिक्कों के साथ खाने की चीजें भी नहीं रखना चाहिए।
एक जमानें में तिजौरी का घर,दूकान आदि में बड़ा महत्व होता था क्यों ? क्योंकि वही एकमात्र धन को संग्रह करने का स्थान था. समय बीता और तिजौरी का स्थान धीरे धीरे हटने लगा,परिणाम स्वरूप आज तिजौरी बहुत कम यदा-कदा ही मिलती है. वास्तु में तिजौरी का वर्णन मिलता है. पिछले कई वर्षो से पर्स का चलन बड़ने लगा है और पर्स महिलाओं के हाथ में होना एक फैशन का रूप भी बन गया है. पुरुष वर्ग भी पर्स के बिना धन नहीं रखते. मेरे अनुभव में तिजौरी और पर्स में कोई विशेष अन्तर नहीं रहा. दैनिक कार्यों में पर्स की महत्ता ज्यादा है, आपके पर्स का आकार, रंग आपके पर्स में रखे हुए सामान आपके जीवन में होने वाली छोटी से छोटी घटना के सूचक होते है.
वास्तु के अनुसार पर्स में ऐसे वस्तुएं हरगिज न रखें जो नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती हैं।
पर्स में किसी भी प्रकार के बिल या भुगतान से संबंधित कागज नहीं रखने चाहिए।
अपने पर्स में एक लाल रंग का लिफाफा रखें। इसमें आप अपनी कोई भी मनोकामना एक कागज में लिख कर रखें। वह शीघ्र पूरी होगी।
बैग में लाल रेशमी धागे से एक गांठ बांध कर रखें।
बैग में शीशा और छोटा चाकु अवश्य रखें।
बैग में रुपये पैसे जहां रखते हों वहां पर कौड़ी या गोमती चक्र अवश्य रखें।
चाबी को छल्ले में डाल कर रखें। यदि इस छल्ले में लाफिंग बुद्धा या अन्य कोई फेंगशुई का प्रतीक अच्छा रहता है।
पर्स में किसी भी प्रकार का पिरामिड रखें। यह आपके लिए लाभदायक होगा।
रात्री में सोते समय पर्स कभी भी सिरहाने ना रख कर उसे हमेशा अलमारी में रखें.
पर्स में रूपये कभी भी मोड या फोल्ड कर ना रखे.
पर्स में कभी भी रुपयों के साथ कोई बिल-रसीद या टिकट ना रखे इससे विवाद बड़ता है .
पर्स में सिक्कों की व्यवस्था अलग हो तथा बंद कर के रखें पर्स खोलते समय सिक्का नीचे नहीं गिरना चाहिये. इससे अपव्यय बढता है.
अपने पर्स में किसी पूर्णिमा को लाल रेशमी कपडे में चुटकी भर या २१ दाने अखंडित चावल बाँध कर छुपा कर रखने से बेवजह खर्च नहीं होता है.
अपनी राशी के अनुसार रखे पर्स का रंग…लाभ होगा जैसे
मेष,सिंह, और धनु राशि वाले अपना पर्स लाल या नारंगी रंग का रखे. तो लाभ होगा
वृष,कन्या, और मकर राशि वालों को भूरे रंग का पर्स तथा मटमैले रंग का पर्स बहुत फायदा पंहुचायगा
मिथुन,तुला, और कुम्भ राशि वाले यदि नीले रंग व सफ़ेद रंग का प्रयोग करते है तो मानसिक स्थति के साथ साथ धन के के आगमन के रास्ते भी खुलेंगे.
कर्क,वृश्चिक, और मीन राशि को तो हमेशा हरा रंग और सफ़ेद रंग का प्रयोग अपने पर्स में करना लाभदायक रहेगा
The Power of Beej Mantra-बीज मंत्र की महिमा
ॐ कार मंत्र जैसे दूसरे २० मंत्र और हैं | उनको बोलते हैं बीज मंत्र | उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं | सब बिज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है | जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं |
ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है | ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी की पूजा में करते हैं | लेकिन बं.... उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है | गठिया ठीक हो जाता है | शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो बं..... शब्द, गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है | बीज मंत्र है खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है | हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता | ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है | १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का प्रभाव चला जाता है | खं शब्द |
ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है | ब्रह्म वाचक | तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं |
ॐ, खं और कं |
ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है | रीं रामाय नम: ||
कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है | क्लीं कृष्णाय नम: ||
कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है | क्लीं कृष्णाय नम: ||
तो जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ मिंडी लगा दो तो १० गुना हो गया | ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम: | तो हुं बिज मंत्र है | ॐ बिज मंत्र है | विष्णवे..., तो विष्णु भगवान का सुमिरन | ये आरोग्य के मंत्र हैं | तो बिज मंत्र जिसमें जितने |
एक मैं मंत्र देता हूँ, जो एकदम सीरियस है, केस ठीक नही है, डॉक्टरों को समझ में नही आ रहा, तबियत ठीक नही है, फलाना है, धिन्गना है, एकदम विशेष जो रोगग्रस्त अथवा समस्या से, तकलीफ से ग्रस्त है | उनको मैं मंत्र देता हूँ | उसको मैंने ऐसे ही विनोद में नाम रख दिया यमराज का मोबाईल नम्बर है, तो उसमें ४ बिज मंत्र हैं |
तो बीज मंत्रो की साधना अथवा बीज मंत्रो का प्रभाव उसी सच्चिदानंद परमात्मा से आता है |
ये जो देवता लोग आशीर्वाद देते हैं अथवा जिनका आशीर्वाद पड़ता है, उनके जीवन में बीज मंत्रो का भी प्रभाव पड़ता है |
मंत्र शास्त्र में बीज मंत्रों का विशेष स्थान है। मंत्रों में भी इन्हें शिरोमणि माना जाता है क्योंकि जिस प्रकार बीज से पौधों और वृक्षों की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार बीज मंत्रों के जप से भक्तों को दैवीय ऊर्जा मिलती है। ऐसा नहीं है कि हर देवी-देवता के लिए एक ही बीज मंत्र का उल्लेख शास्त्रों में किया गया है। बल्कि अलग-अलग देवी-देवता के लिए अलग बीज मंत्र हैं।
“ऐं” सरस्वती बीज । यह मां सरस्वती का बीज मंत्र है, इसे वाग् बीज भी कहते हैं। जब बौद्धिक कार्यों में सफलता की कामना हो, तो यह मंत्र उपयोगी होता है। जब विद्या, ज्ञान व वाक् सिद्धि की कामना हो, तो श्वेत आसान पर पूर्वाभिमुख बैठकर स्फटिक की माला से नित्य इस बीज मंत्र का एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“ह्रीं” भुवनेश्वरी बीज । यह मां भुवनेश्वरी का बीज मंत्र है। इसे माया बीज कहते हैं। जब शक्ति, सुरक्षा, पराक्रम, लक्ष्मी व देवी कृपा की प्राप्ति हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्लीं” काम बीज । यह कामदेव, कृष्ण व काली इन तीनों का बीज मंत्र है। जब सर्व कार्य सिद्धि व सौंदर्य प्राप्ति की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“श्रीं” लक्ष्मी बीज । यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है। जब धन, संपत्ति, सुख, समृद्धि व ऐश्वर्य की कामना हो, तो लाल रंग के आसन पर पश्चिम मुख होकर कमलगट्टे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"ह्रौं" शिव बीज । यह भगवान शिव का बीज मंत्र है। अकाल मृत्यु से रक्षा, रोग नाश, चहुमुखी विकास व मोक्ष की कामना के लिए श्वेत आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"गं" गणेश बीज । यह गणपति का बीज मंत्र है। विघ्नों को दूर करने तथा धन-संपदा की प्राप्ति के लिए पीले रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
"श्रौं" नृसिंह बीज । यह भगवान नृसिंह का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, सर्व रक्षा बल, पराक्रम व आत्मविश्वास की वृद्धि के लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“क्रीं” काली बीज । यह काली का बीज मंत्र है। शत्रु शमन, पराक्रम, सुरक्षा, स्वास्थ्य लाभ आदि कामनाओं की पूर्ति के लिए लाल रंग के आसन पर उत्तराभिमुख बैठकर रुद्राक्ष की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
“दं” विष्णु बीज । यह भगवान विष्णु का बीज मंत्र है। धन, संपत्ति, सुरक्षा, दांपत्य सुख, मोक्ष व विजय की कामना हेतु पीले रंग के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर तुलसी की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है।
Measures nine planets-नौ ग्रहो के उपाय
सूर्य: यदि आपकी जन्म पत्रिका में सूर्य अच्छे फल नही दे रहा है, तो नवरात्र में आपको महात्रिपुरसुंछरी और कूष्माण्डा देवी की उपासना करनी होगी और मन्त्र ‘ऐं क्लीं सौः’ का जप नवरात्र में करना आपको लाभ दायक होगा। बालत्रिपुरसुन्दी तथा कूष्माण्डा देवी का विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र रखकर उनका नित्य पूजन करें ने कृष्टो मे कमी आयेगी, मन्त्र की नित्य 9 माला करे।
चन्द्रमा: जन्मपत्रिका में यदि चन्द्रमा अच्छे फल नही दे रहा है, तो व्यक्ति को माँ लक्ष्मी और शैलपुत्री की पूजा-उपासना करनी चाहिए। इन नवरात्र में प्रथम दिन से ही दोनों देवियों के चित्र, के सामने अथवा यन्त्र को सामने रखकर सर्वप्रथम उनकी पूजा-उपासना करें। तत्पष्चात् ‘ऊँ नमः कमलवासिन्यै स्वाहा’ मन्त्र का नवरात्रपर्यन्त नित्य 9 मालाओं का जप करें।
मंगल: यदि आपकी जन्मपत्रिका में मंगल अच्छे फल नही दे रहा है, तो इन नवरात्र में स्कन्दमाता और मातंगी देवी की पूजा-उपासना करनी चाहिए। प्रथम नवरात्र से ही दोनों देवियों के विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र को स्थापित करके उनकी पूजा-उपासना करनी चाहिए। तत्पष्चात ‘ऊँ हीं क्लीं हं मातंग्यै फट् स्वाहा’ मन्त्र की नवरात्रपर्यन्त 9 मालाओं का जप करें।
बुध: यदि जन्मपत्रिका में बुध अच्छे फल नही दे रहा है, और समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हो, तो इस नवरात्र में महातारा और ब्रह्मचारिणी देवी के विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र को स्थापित कर नवरात्रपर्यन्त नित्य उनका पूजन अर्चन करें और ‘ऊँ हीं त्रीं हुं फट्’ मन्त्र का नवरात्रपर्यन्त नित्य 9 मालाओं का जप करें।
गुरू: यदि आपकी जन्मपत्रिका में गुरू अशुभफलकारी हो, अच्छे फल नही दे रहा है तो उसे अनुकूल बनाने के लिए नवरात्र में नित्य माँ बगलामुखी और माँ चन्द्रघण्टा के चित्र अथवा यन्त्र का पूजन करें। मन्त्र की नित्य 9 मालाओं का नवरात्र पर्यन्त जप करें।
शुक्र: यदि आपकी जन्मपत्रिका में शुक्र अशुभफलकारी हो, अच्छे फल नही दे रहा है तो उसे अनुकूल बनाने के लिए इन नवरात्रों में माँ भुवनेष्वरी और महागौरी के चित्र अथवा यन्त्र की स्थापना कर नित्य उनका पूजन-अर्चन करें और नित्य 9 मालाओं का जप करें।
शनि: यदि आपकी जन्मपत्रिका में शनि अशुभफलकारी हो, अच्छे फल नही दे रहा है तो नवरात्र में महाकाली और कालरात्रि की उपासना करना श्रेष्ठ होगा। इस हेतु इनके विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र का नवरात्र पर्यन्त नित्य पूजन-अर्चन करें और ‘ऊँ हृौ काली महाकाली किलिकिले फट् स्वाहा’ मन्त्र की नित्य 9 मालाओं का जप करें।
राहू: यदि आपकी जन्मपत्रिका अशुभफलकारी हो, अच्छे फल नही दे रहा है और आपको पीड़ित कर रहा हो, तो उसे अनुकूल बनाने के लिए माँ छिन्नमस्ता और माँ कात्यायिनी की नित्य पूजा-उपासना करली चाहिए। इस हेतु नवरात्र में प्रथम दिन से ही पूजा स्थान में उनके विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र की स्थापना कर नित्य उनका पूजन करें। मन्त्र की 9 मालाओं का जप नवरात्र पर्यन्त करें।
केतु: जन्मपत्रिका में केतु अशुभफलकारी हो, अच्छे फल नही दे रहा है और उसे अनुकूल बनाने के लिए नवरात्र में त्रिपुर भैरवी और सिद्धिदात्री की पूजा-अर्चना उनके विग्रह, चित्र अथवा यन्त्र की स्थापना कर नवरात्र पर्यन्त नित्य करनी चाहिए। साथ ही ‘हसैं हसकरीं हसैं’ मन्त्र का नवरात्र पर्यन्त नित्य 9 मालाओं का जप करना चाहिए।
What is your visiting card?-कैसा हो आपका विजिटिंग कार्ड?
वास्तु के अनुसार
मुंशी प्रेमचन्द्र ने कहा था- "तुम्हे अपनों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली। चलो अब हो चुका मिलना न तुम न खाली न हम खाली।" आज की दूर संचार क्रान्ति में में यह कथन एकदम सही साबित हो रहा है। एक-दूसरे से जान-पहचान तो है, परन्तु यह याद रख पाना कठिन है कि किससे कब और किस जगह मुलाकात हुयी थी। आज सम्पर्क को स्थायित्व एंव गतिशील बनाने के लिए विजिटिंग कार्ड का दौर चल रहा है।
मुंशी प्रेमचन्द्र ने कहा था- "तुम्हे अपनों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली। चलो अब हो चुका मिलना न तुम न खाली न हम खाली।" आज की दूर संचार क्रान्ति में में यह कथन एकदम सही साबित हो रहा है। एक-दूसरे से जान-पहचान तो है, परन्तु यह याद रख पाना कठिन है कि किससे कब और किस जगह मुलाकात हुयी थी। आज सम्पर्क को स्थायित्व एंव गतिशील बनाने के लिए विजिटिंग कार्ड का दौर चल रहा है।
आधुनिक समय में व्यापार में विजिटिंग कार्डों का प्रचलन महत्वपूर्ण बन गया है। फलस्वरूप आधुनिक व्यापार विजिटिंग कार्डों के माध्यम से ही प्रभावित होने लगा है। इसीलिए यह आवश्यक है कि व्यापार में सफलता प्राप्त करने के लिए हमारा विजिटिंग कार्ड वास्तु के नियमानुकूल हो जिस से हमें सकारात्मक उर्जा प्राप्त हो सके ।
ऐसे में आपको यह सुनिश्चित करना है कि आपका विजिटिंग कार्ड कैसा हो? वास्तु के अनुसार यदि विजिटिंग कार्ड बनाया जाये तो, सम्पर्क और व्यवासय दोनों में प्रगतिशीलता कायम रहेगी। आगे पढ़ने से पहले यह समझ लें कि अपने विजिटिंग कार्ड को आप वास्तु की दिशाओं से कैसे जोड़ेंगे। अपने विजिटंग कार्ड को सामने रखें, ऊपर की ओर पूर्व दिशा होगी, नीचे पश्चिम, दाएं दक्षिण और बाएं उत्तर।
यदि आपका विजिटिंग कार्ड वास्तु अनुकूल रंग एवं आकर्षित बना हुआ है तो निश्चय ही आपके व्यापार को बढावा मिलेगा.इसके विपरीत आकर्षण विहीन विजिटिंग कार्ड जो वास्तु के नियम विपरीत बना हुआ है धीरे धीरे निश्चय ही आप के व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव देगा तथा आपको व्यापार में असफलता का सामना करना पड़ेगा अतः यह नितांत आवश्यक है कि विजिटिंग कार्ड बनवाने से पहले वास्तु अनुसार उसमें अनुकूल रंग एवं डिजाईन कि जांच कर ली जाए।
विजिटिंग कार्ड का आकार समकोण होना चाहिए। विषम कोण वाला विजिटिंग कार्ड सम्पर्क को अस्थायी एंव विवादग्रस्त बना सकता है और शीघ्र ही आपके सम्बन्ध टूट जायेंगे।विजिटिंग कार्ड में किस दिशा में क्या लिखवाया जाये, यह अधिक महत्वपूर्ण है। कार्ड के मध्य में ब्रहम स्थान से उपर आप-अपना नाम लिखा सकते हैं। मोबाइल नम्बर आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व के कोने पर अकिंत करें। अपने व्यवसाय व संस्थान का नाम व पूरा पता दक्षिण-पश्चिम के कोण यानि नैरित्य कोण पर लिखवाना चाहिए । क्योंकि नैऋत्य कोण स्थिरता व व्यापकता का प्रतीक माना जाता है।कार्ड के रंगों का चयन अपनी जन्मपत्री के अनुसार करना चाहिए।
ट्रेडमार्क, मोनोग्राम, स्वास्तिक, कलश और गणपति आदि के लिए कार्ड का ईशान कोण अधिक शुभ माना जाता है। एक अच्छे विजिटिंग कार्ड के लिए कार्ड का मध्य क्षेत्र, जिसे वास्तु में ब्रहम स्थान कहा जाता है। उसे खाली रखना चाहिए। यह ध्यान रखे की एक सुन्दर और वास्तु के अनुसार डिजाईन किया हुआ विजिटिंग कार्ड आपके संपर्कों में मधुरता एंव व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण पैदा करता है।
विजिटिंग कार्ड में किस दिशा में क्या लिखवाया जाये, यह अधिक महत्वपूर्ण है। कार्ड के मध्य में ब्रहम स्थान से उपर आप-अपना नाम लिखा सकते हैं। मोबाइल नम्बर आग्नेय कोण यानि दक्षिण-पूर्व के कोने पर अकिंत करें। अपने व्यवसाय व संस्थान का नाम व पूरा पता दक्षिण-पूर्व के कोण पर डालें। क्योंकि नैऋत्य कोण स्थिरता व व्यापकता का प्रतीक माना जाता है।
कार्ड के रंगों का चयन अपनी जन्मपत्री के अनुसार करना चाहिए। ट्रेडमार्क, मोनोग्राम, स्वास्तिक, कलश और गणपति आदि के लिए कार्ड का ईशान कोण अधिक शुभ माना जाता है। एक अच्छे विजिटिंग कार्ड के लिए कार्ड का मध्य क्षेत्र, जिसे वास्तु में ब्रहम स्थान कहा जाता है। उसे खाली रखना चाहिए। एक सुन्दर विजिटिंग कार्ड आपके संपर्कों में मधुरता एंव व्यक्तित्व में चुम्बकीय आकर्षण पैदा करता है।
वास्तु अनुसार विजिटिंग कार्ड इस प्रकार हो
आप का विजिटिंग कार्ड सुंदर एवं आकर्षक होना चाहिए इसके साथ साथ उसका चौरस होना तथा कटा-फटा ना होना भी अत्यन्त आवश्यक है।
आप का कार्ड झुर्र्यिओं व सलवटों से रहित हो तथा उसके बीच का स्थान खली(रिक्त) होना चाहिए जिससे कि अनुकूल सकारात्मक उष्मा आप के व्यापार को मिलती रहे।
विजिटिंग कार्ड कि अनुकूलता के लिए उसके उत्तरी पूर्वी (ईशान) कोने पर अपने धरम अनुसार धार्मिक चिन्ह या राष्ट्रीय चिन्ह अंकित करना वास्तु नियमों के अंतर्गत माना गया है। जो हमें अच्छी सफलता प्रदान करता है।
जहाँ तक फोन नुम्बरों का सवाल है जिससे हमारे व्यापारिक संपर्क बनते हैं उत्तर पश्चिम (व्यावय ) दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में वायु का प्रभाव अति तीव्र होने के कारण हमारे व्यापार में हमें अनुकूल प्रभाव मिलेंगे।
विजिटिंग कार्ड का चुनाव करते समय यह आवश्यक है कि वह हलकी क्वालिटी का न हो ,पीले ,लाल व हरे रंग का विजिटिंग कार्ड वास्तु नियमों के अंतर्गत माना गया है।
जहाँ तक आपका नाम व पता लिखने कि बात है उसे दक्षिण पश्चिम वाले कोने से लिखना अच्छा व वास्तु अनुकूल माना गया है।
अनुसार कार्ड के रंग का चुनाव कर सकते हैं. इसके साथ साथ कार्ड का आकर्षित होना तथा सुंदर लिखा जाना भी आवश्यक है।
अत: वास्तुशास्त्र के नियम से विजिटिंग कार्ड को अलग अलग रुप से तैयार कीया जा सकता है. जैसे…
अत: वास्तुशास्त्र के नियम से विजिटिंग कार्ड को अलग अलग रुप से तैयार कीया जा सकता है. जैसे…
01. जन्म के चन्द्र की राशि के रंग के अनुरुप
02. अंकशास्त्र के अनुरुप
03. जन्मकुंडली के प्रबल ग्रहो के रंग के अनुरुप
04. जन्मकुंडली में सूर्य की स्थिति के अनुरुप
05. जन्मकुंडली के कर्मस्थान और भाग्यस्थान की स्थिति के अनुरुप
06. नक्षत्र स्वामी के अनुरुप
07. व्यक्ति या संस्था के प्रोफ़ेशन ( व्यवसाय ) के अनुरुप विजिटिंग कार्ड की रचना की जा सकती है.
जनरली लोग अपने बिजनेस कार्ड को ही सोशल ओकेजंस पर दिए जाने वाले विजिटिंग काड्र्स की तरह यूज करते हैं, जबकि सोशल गैदरिंग्स या नॉन फॉर्मल रिलेशंस के लिए ऐसे काड्र्स सही नहीं हैं. आपके बिजनेस कार्ड में ज्यादा से ज्यादा आपके ऑफिस में आपका डेजिग्नेशन, ऑफिशियल मेल आईडी, आपकी डेस्क का एक्सटेंशन नंबर और आपका ऑफिशियल कांटैक्ट नंबर दिया होगा. ये इंफॉर्मेशन एक नॉन फॉर्मल इंट्रोडक्शन के लिए बहुत नहीं है. अगर आप सोशलाइजिंग अक्सर करते हैं और अपनी प्रोफेशनल लाइफ के सिवा भी कुछ और फील्ड्स में एक्टिव हैं तो एक अलग कॉलिंग कार्ड आपके लिए जरूरी है.
आपका कॉलिंग कार्ड आपकी पर्सनैलिटी और काम को सूट करता हुआ होना चाहिए. एक फैक्ट ये है कि सही कलर स्कीम, सही फॉन्ट और सही इन्फॉर्मेशन कॉलिंग कार्ड रखने का पर्पज सॉल्व कर देते हैं. इसके बावजूद अगर आप अपने कार्ड को कुछ अलग तरीके से कस्टमाइज कराना चाहें तो फोल्डिंग काड्र्स चुन सकते हैं. या बैक में कोई अपीलिंग डिजाइन बनवा सकते हैं. ये सेलेक्शन आपके काम से रिलेटेड होना चाहिए.
आपके कॉलिंग कार्ड पर लिखी इन्फो बिजनेस कार्ड से अलग होनी चाहिए. इस पर इन्फो ज्यादा डिटेल्ड और पर्सनल हो सकती है. जरूरत से ज्यादा इन्फॉर्मेशन डालकर इसे भरा-भरा दिखाने से बचें. ये इन्फॉर्मेशन आप अपने कार्ड पर डाल सकते हैं...
अपनी पहचान
अगर आप राइटर हैं तो ये इन्फो आपके बिजनेस कार्ड पर नहीं हो सकती. इसे आप कॉलिंग कार्ड पर डाल सकते हैं.
आपके कांटैक्ट नंबर
इसमें आप अपने ऑफिस या घर का नंबर दे सकते हैं.
आपकी ईमेल आईडी
पर्सनल मेल्स आप ऑफिशियल आईडी पर नहीं चाहेंगे. सो पर्सनल आईडी मेंशन करें. सोशल नेटवर्किंग साइट पर प्रिजेंस अपना ट्विटर या एफबी आईडी भी दे सकते हैं.
ब्लॉग या वेबसाइट
अपने काम से रिलेटेड या पर्सनल ब्लॉग या वेबसाइट हो तो वो भी इस कार्ड पर मेंशन करें.
ऑफिस इन्फो ऑफिस से रिलेटेड कुछ इन्फॉर्मेशन आपके पर्सनल लिंक्स में भी काम आ सकती है. अगर आप अपने ऑफिस या कंपनी में सीनियर पोजिशन पर हैं तो इसे भी मेंशन कर सकते हैं.
आपका विजिटिंग कार्ड आपके लिए महज एक फॉर्मेलिटी हो सकता है लेकिन अगर तरीके से यूज किया जाए तो ये नेटवर्किंग का एक बेहतरीन टूल बन सकता है
Soil-मिट्टी
मिट्टी भी चमत्कारी होती है! गमलों में रख कर पौधे लगायें व्यापार वृद्धि होती है।
सरकारी भवनों में लाल मिटटी व इसी मिटटी में लगे पौधे उन्नति देते हैं
कार्यालयों में रेतीली मिटटी व इसी मिटटी के गमलों में लगे पौधे उन्नति व लाभ देते है
व्यापार स्थल पर लाल व पीली मिटटी को मिला कर प्रयोग में लाना चाहिए व इसी मिटटी को गमलों में रख कर पौधे लगायें तो व्यापार वृद्धि होती है
अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी आदि में रेतीली व लाल मिटटी मिला कर उपयोग में लायें व इसी में पौधे उगाने से विद्या व ज्ञान का लाभ मिलता है
धार्मिक स्थलों व अस्पताल आदि में काली मिटटी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए उसमें ही पौधे उगायें
घर के निर्माण के लिए लाल मिटटी वाली भूमि श्रेष्ठ होती है
कृषि के लिए काली व भूरी मिटटी श्रेष्ठ होती है
चिकित्सा के लिए चिकनी मिटटी, मुल्तानी मिटटी ज्यादा लाभदायक होती है
खेल सम्बन्धी स्थान के लिए रेतीली मिटटी उत्तम होती है
वास्तु के अनुसार सफेद मिटटी को ब्रह्मणि मिटटी कहा जाता है जो ज्ञान विचार बुद्धि विवेक धर्म कर्म में
बल देने वाली होती है
लाल रंग की मिटटी को कत्रानी मिटटी कहा गया है जो शक्ति देने वाली, उर्जा देने वाली, सत्ता का सुख
देने वाली और भोग देने वाली होती है
हरे रंग से मिलती जुलती मिटटी को वैश्य मिटटी कहा गया है जो धन लाभ, समृद्धि व सुखदायिनी होती है
काले रंग की मिटटी को शूद्रनी कहा गया है जो रहने के लिए उत्तम नहीं पर कृषि आदि कार्यों के लिए अच्छी
होती है तथा रोग हरनेवाली, आयु देने वाली, आनन्द देने वाली व यश देने वाली होती है
जिस मिटटी से सुगंध आती हो हर तरह से लाभ व उन्नति देती है
सडांध वाली मिटटी को अशुभ कहा गया है जिसका प्रयोग हर प्रकार से वर्जित होता है
मिट्टी दुनिया का सारा मल, कूड़ा या हर तरह की गन्दगी को अपने अंदर समा लेती है और खुद अपने आप में शुद्ध हो जाती है। ज़मीन के अंदर जो कुछ भी दबा दिया जाता है वह मिट्टी बन जाता है।
भारत की मृदा सम्पदा पर देश के उच्चावच तथा जलवायु का व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। देश में इनकी विभिन्नताओं के कारण ही अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की मिट्टी की विशेषताओं में मिलने वाली विभिन्नता का सम्बन्ध चट्टानों की संरचना, उच्चावचों के धरातलीय स्वरूप, धरातल का ढाल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति आदि से स्थापित हुआ है।
इस्तेमाल में आने वाली मिट्टी
मिट्टी चाहे कोई सी भी किस्म की क्यों न हो लेकिन होनी साफ-सुथरी जगह की चाहिए जैसे जहाँ सूरज की रोशनी पहुँचती हो तथा ज़मीन से दो या ढाई फुट से निकाली हुई हो। हर मिट्टी को धूप में सुखाकर और छानकर इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है। दीमक के टीले की मिट्टी बहुत ही ज़्यादा गुणकारी होती है। नहाने और सिर को धोने के लिए मुलतानी मिट्टी बड़ी लाभकारी होती है।
बालू भी मिट्टी को ही बोला जाता है जो किसी भी मनुष्य के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह भोजन और पानी। लेकिन बालू मिट्टी के गुणों को केवल प्राकृतिक चिकित्सक ही अच्छी तरह जानते हैं। प्राकृतिक दशा में खाई जाने वाली खाने की चीज़ें जैसे साग-सब्जी, खीरा, ककड़ी आदि के साथ हमेशा बालू मिट्टी का कुछ भाग ज़रूर होता है, जिसे हम जानकारी ना होने के कारण गंवा देते है। ये बालू मिट्टी के कण हमारी भोजन पचाने की क्रिया को ठीक रखने मे मदद करते हैं।
क्या किसी ने सोचा है कि पहाड़ी झरनों के पानी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों बताया जाता है? इस पानी को पीने से भूख ज़्यादा क्यों लगती है और पाचन क्रिया क्यों ठीक होती है? ये सब इसलिए होता है क्योंकि इस पानी में बालू मिट्टी के कुछ अंश मिले हुए होते हैं, जिन्हे पानी के साथ पिया जाता है। ये झरने जो पहाड़ों से बहकर आते हैं और अपने साथ बालू मिट्टी का ढेर लाते हैं, और ये पानी भोजन को पचाने वाले साबित होता है। बालू मिट्टी के अंदर छुतैल ज़हर को समाप्त करने की ताकत होती है। बालू मिट्टी प्रकृति की ओर से मानो संक्रमण को दूर करने वाली दवा का काम करती है। प्रयोगों द्वारा ये साबित हो चुका है कि बालू मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। जिस व्यक्ति को पेट के रोग जैसे - कब्ज, शौच खुलकर ना आना हो वो अगर खाना खाने के बाद ही एक चुटकी समुद्री बारीक बालू मिट्टी दिन में 2-3 बार निगल लें तो दूसरे दिन ही पेट की आंतें ढीली पड़ जाएगी और मल आसानी से निकलने लगेगा तथा आखिर में कब्ज भी दूर हो जाएगी।
मिट्टी के प्रयोग
मिट्टी के चिकित्सीय गुण
मिट्टी के अंदर ज़हर को खींच लेने की बहुत ज़्यादा ताकत है।
ये शरीर के अंदर के पुराने से पुराने मल को घुलाती है और बाहर निकालती है।
मिट्टी शरीर के ज़हरीले पदार्थों को बाहर खींच लेती है।
त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुंसी सूजन, दर्द आदि होने पर मिट्टी काफ़ी लाभकारी साबित होती है।
मिट्टी जलन, स्राव और तनाव आदि को समाप्त करती है।
शरीर की फ़ालतू गर्मी को मिट्टी खींचती है।
मिट्टी शरीर में जरूरी ठंडक पहुंचाती है।
मिट्टी बदबू और दर्द को दूर करने वाली है।
ये शरीर में चुम्बकीय ताकत देती है जिससे चुस्ती-फुर्ती और ताकत पैदा होती है।
मिट्टी के अलग-अलग प्रयोग
मिट्टी में सोना - मिट्टी में सोने से नींद ना आना, स्नायु की कमज़ोरी और ख़ून की ख़राबी जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।
मिट्टी की मालिश - मिट्टी को शरीर पर अच्छी तरह से मलने से और शरीर पर लगाने से ज़हरीले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
मिट्टी स्नान - साबुन की जगह शरीर पर मिट्टी लगाकर नहाने से हर तरह के रोगों में लाभ होता है।
मिट्टी पर नंगे पैर घूमना - मिट्टी पर नंगे पैर घूमने से गुर्दे के रोगों में आराम आता है, आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर को चुम्बकीय ताकत मिलती है।
मिट्टी की पट्टी - मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा बहुत से रोगों में इसका इस्तेमाल होता है। पेट के हर तरह के रोग में इसका बहुत ही ख़ास स्थान है। इसका इस्तेमाल पेड़ू, पेट, छाती, माथे, आंख, सिर, रीढ़ की हड्डी, गला, पांव, गुदा आदि जहाँ पर भी जरूरत पड़े कर सकते हैं।
मिट्टी की पट्टी बनाने की विधि - मिट्टी को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर और छानकर इस्तेमाल से 12 घंटे पहले भिगों दें। इस्तेमाल के समय जरूरत के मुताबिक एक बारीक सूती कपड़ा बिछाकर आधा इंच मोटी परत की मिट्टी की पट्टी को फैला दें। शरीर के जिस भाग पर मिट्टी की पट्टी लगानी हो इसे उलटकर लगा दें और ऊपर से किसी गर्म कपड़े से ढक दें। इस पट्टी के लगाने का समय ज़्यादा से ज़्यादा 20 से 30 मिनट तक होना चाहिए नहीं तो मिट्टी द्वारा खींचा गया ज़हर शरीर में दोबारा चला जाता है। जो मिट्टी एक बार इस्तेमाल कर ली गई हो उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
कुदरती उपचार - कुदरती उपचार का मतलब ये है कि कुदरत के बनाए हुए नियमों का पालन करना और कुदरत के तत्वों - पृथ्वी (मिट्टी), जल, सूर्य और वायु का ऐसे इस्तेमाल करना जिससे शरीर में जमा हुआ कूड़ा-करकट बाहर निकल जाए, शरीर शुद्ध बना रहे और शरीर के अंदर की चेतना शक्ति ताकतवर बनी रहे, शरीर के सभी रोग दूर हो और शरीर सही तरह से काम करता रहे।
पृथ्वी (मिट्टी) - मिट्टी में बहुत ज़्यादा मात्रा में जंतु मौजूद होते हैं। इसलिए गीली मिट्टी को पेट या शरीर के दूसरे हिस्सों पर रखने को कम ही कहा जाता है। हरा रस बनाते समय बची हुई चटनी या सीठी का इस्तेमाल मिट्टी की तरह कर सकते हैं। ऐसी सीठी आंख, पेट या चमड़ी के रोगों वाले हिस्सों पर रखी जा सकती है। उसके सूख जाने पर उसके ऊपर हरा रस छिड़क लें या दूसरी हरी सीठी अथवा चटनी रख लें। हरी सीठी रखने के बाद उस पर सूरज की धूप खाने से बहुत अच्छा नतीजा मिलता है। सफेद दाग, ल्युकोडर्मा, कोढ़ आदि रोगों में सीठी बहुत ही लाभकारी असर करती है।
विभिन्न रोगों में सहायक
फोड़ा :-- सूजन, फोड़ा, अंगुली की विषहरी (उंगुली में ज़हर चढ़ने पर) में गीली मिट्टी का लेप हर आधे घंटे तक बदलते रहने से लाभ होता हैं। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप रोग को बाहर खींच निकालता है। मुल्तानी मिट्टी या चिकनी मिट्टी को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं।
कनफेड (कान के नीचे जलन होकर सूजन आ जाना) :-- कनफेड होने पर काली मिट्टी का लेप करने से लाभ होता है।
दांतों की मज़बूती :-- दांत हिलते हो, टूटने जैसे हो तो चिकनी मिट्टी (चाहे काली हो या लाल) को भिगोकर रोजाना सुबह-शाम मसूढ़ों पर मलने से दांत मज़बूत हो जाते हैं।
दांत के दर्द :-- साफ़ मिट्टी से रोजाना 3 बार मजंन करने से दांत दर्द ठीक हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह तक में रखें, फिर थूककर कुल्ले करें। इससे पायरिया व दांतों के रोगी को लाभ होगा। इस प्रयोग के समय मिठाई का सेवन न करें।
कब्ज :-- पेट पर गीला कपड़ा बिछायें। उस पर गीली मिट्टी का लेप करके मिट्टी बिछायें। इस पर फिर कपड़ा बांधे। रातभर इस तरह पेट पर गीली मिट्टी रखने से कब्ज दूर होगी। मल बंधा हुआ तथा साफ़ आयेगा।
सिर दर्द :-- गीली मिट्टी की पट्टी को सिर पर रखने से सिर दर्द दूर होता है।
बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर :-- बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधने से आराम आता है।
ज्वर (बुखार) :-- गीली मिट्टी की पट्टी पेट पर बांधें, हर घंटे में बदलते रहें। इससे बुखार की जलन दूर हो जायेगी।
प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :-- 1 महीने तक गीली मिट्टी पेट पर लगाने से तिल्ली का बढ़ना बंद हो जाता है।
रोग-निरोधक :-- आमतौर पर लोग बच्चों को एकदम साफ़ माहौल में रखते हैं और गलियों की धूल से बचाकर रखते हैं, जोकि समझदारी नहीं है क्योंकि धूल में पाये जाने वाले कई लाभदायक बैक्टीरिया बच्चों को कुछ रोगों से बचाने में उनकी मदद करते हैं। माताएं अपने बच्चों को धूल-मिट्टी के कणों से बचाकर रखती है। ऐसे रहने वाले बच्चे आगे चलकर एलर्जी व अस्थमा जैसे रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
नकसीर :-- रात को मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी मिलाकर उसमें 10 ग्राम मुल्तानी मिट्टी भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से कुछ ही दिनों में सालों की पुरानी नकसीर ठीक हो जाती है। 1 गिलास पानी में रात को 5 चम्मच मुल्तानी मिट्टी भिगोकर सुबह पानी छानकर पियें तथा नाक पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करें। इससे नाक से ख़ून बहना बंद हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह में रखकर फिर थूककर कुल्ला करें। इससे पायरिया रोग खत्म हो जाता है।
गठिया रोग :-- जब घुटनों में दर्द हो तो रात को मिट्टी की पट्टी बांधकर पानी के भाप से घुटने की सिंकाई करें। इससे रोगी को लाभ मिलता है।
चेहरे की सुन्दरता :-- 1 बड़ा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 3 बड़े चम्मच दही, 1 चम्मच चाय और शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा की गहरी सफाई करता है और त्वचा के बंद रोमकूपों को भी खोलता है जिससे त्वचा की ख़ूबसूरती बढ़ती है। एक टुकड़ा मुल्तानी मिट्टी का लेकर बहुत ही बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। फिर इस पाउडर में इतना पानी मिला लें कि इस पाउडर की लुगदी (लेप) बन जाए। अब इस लेप को चेहरे पर 15 मिनट तक लगाकर सूखने दें। फिर 15 मिनट के बाद इसे गुनगुने पानी से धो लें। यह प्रयोग सप्ताह में 2 बार करने से चेहरे पर ताजगी छाई रहती है। 1 बड़े चम्मच मुल्तानी मिट्टी में 3 बड़े चम्मच सन्तरे का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने में बहुत ही लाभकारी है। इससे त्वचा में जो तैलीयपन होता है वह दूर होता है।
विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-- मुल्तानी मिट्टी को भिगोकर पीस लें और इसमें कपूर मिलाकर शरीर पर लेप करें। फिर 1 घंटे के बाद नहा लें। इससे फुंसियों में बहुत ही लाभ होता है।
घमौरियां होने पर :-- शरीर पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।
रंग को निखारने के लिए :-- 4 चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 2 चम्मच शहद, 2 चम्मच दही और 1 चम्मच नींबू के रस को एक साथ मिलाकर चेहरे पर लगायें और आधे घंटे के बाद हल्के गर्म पानी से चेहरे को धो लें। फिर एक बर्फ़ का टुकड़ा लेकर पूरे चेहरे पर रगड़ लें। ऐसा करने से चेहरे का रंग साफ़ होता है।
बच्चों की नाभि की सूजन :-- मिट्टी के ढेले को आग में गर्म करके दूध में बुझा लें फिर उससे नाभि की गर्म-गर्म सिकाई करें। इससे बच्चों की नाभि की सूजन´ दूर हो जाती है।
नाभि रोग (नाभि का पकना) :-- पीली मिट्टी को तेज आग पर गर्म करने के बाद ठण्डा कर लें। उसके बाद उसे दूध में घिसकर बच्चे की नाभि पर लेप करें। इससे नाभि का दर्द ठीक हो जाता है।
कण्ठमाला :-- मिट्टी के तेल की थोड़ी सी बूंदे बताशे में डालकर छोटे बच्चे को 2 बूंद, 8 से 12 साल तक के बच्चे को 3 बूंदे और 12 साल से ज़्यादा के बच्चे को 4 बूंद खिलाने से कुछ ही दिनों में कण्ठमाला (गले की गांठे) समाप्त हो जाती हैं।
सरकारी भवनों में लाल मिटटी व इसी मिटटी में लगे पौधे उन्नति देते हैं
कार्यालयों में रेतीली मिटटी व इसी मिटटी के गमलों में लगे पौधे उन्नति व लाभ देते है
व्यापार स्थल पर लाल व पीली मिटटी को मिला कर प्रयोग में लाना चाहिए व इसी मिटटी को गमलों में रख कर पौधे लगायें तो व्यापार वृद्धि होती है
अध्ययन कक्ष, लाइब्रेरी आदि में रेतीली व लाल मिटटी मिला कर उपयोग में लायें व इसी में पौधे उगाने से विद्या व ज्ञान का लाभ मिलता है
धार्मिक स्थलों व अस्पताल आदि में काली मिटटी का ही प्रयोग किया जाना चाहिए उसमें ही पौधे उगायें
घर के निर्माण के लिए लाल मिटटी वाली भूमि श्रेष्ठ होती है
कृषि के लिए काली व भूरी मिटटी श्रेष्ठ होती है
चिकित्सा के लिए चिकनी मिटटी, मुल्तानी मिटटी ज्यादा लाभदायक होती है
खेल सम्बन्धी स्थान के लिए रेतीली मिटटी उत्तम होती है
वास्तु के अनुसार सफेद मिटटी को ब्रह्मणि मिटटी कहा जाता है जो ज्ञान विचार बुद्धि विवेक धर्म कर्म में
बल देने वाली होती है
लाल रंग की मिटटी को कत्रानी मिटटी कहा गया है जो शक्ति देने वाली, उर्जा देने वाली, सत्ता का सुख
देने वाली और भोग देने वाली होती है
हरे रंग से मिलती जुलती मिटटी को वैश्य मिटटी कहा गया है जो धन लाभ, समृद्धि व सुखदायिनी होती है
काले रंग की मिटटी को शूद्रनी कहा गया है जो रहने के लिए उत्तम नहीं पर कृषि आदि कार्यों के लिए अच्छी
होती है तथा रोग हरनेवाली, आयु देने वाली, आनन्द देने वाली व यश देने वाली होती है
जिस मिटटी से सुगंध आती हो हर तरह से लाभ व उन्नति देती है
सडांध वाली मिटटी को अशुभ कहा गया है जिसका प्रयोग हर प्रकार से वर्जित होता है
मिट्टी दुनिया का सारा मल, कूड़ा या हर तरह की गन्दगी को अपने अंदर समा लेती है और खुद अपने आप में शुद्ध हो जाती है। ज़मीन के अंदर जो कुछ भी दबा दिया जाता है वह मिट्टी बन जाता है।
भारत की मृदा सम्पदा पर देश के उच्चावच तथा जलवायु का व्यापक प्रभाव परिलक्षित होता है। देश में इनकी विभिन्नताओं के कारण ही अनेक प्रकार की मिट्टियाँ पायी जाती हैं। यहाँ की मिट्टी की विशेषताओं में मिलने वाली विभिन्नता का सम्बन्ध चट्टानों की संरचना, उच्चावचों के धरातलीय स्वरूप, धरातल का ढाल, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति आदि से स्थापित हुआ है।
इस्तेमाल में आने वाली मिट्टी
मिट्टी चाहे कोई सी भी किस्म की क्यों न हो लेकिन होनी साफ-सुथरी जगह की चाहिए जैसे जहाँ सूरज की रोशनी पहुँचती हो तथा ज़मीन से दो या ढाई फुट से निकाली हुई हो। हर मिट्टी को धूप में सुखाकर और छानकर इस्तेमाल करना सबसे अच्छा है। दीमक के टीले की मिट्टी बहुत ही ज़्यादा गुणकारी होती है। नहाने और सिर को धोने के लिए मुलतानी मिट्टी बड़ी लाभकारी होती है।
बालू भी मिट्टी को ही बोला जाता है जो किसी भी मनुष्य के लिए उसी तरह जरूरी है जिस तरह भोजन और पानी। लेकिन बालू मिट्टी के गुणों को केवल प्राकृतिक चिकित्सक ही अच्छी तरह जानते हैं। प्राकृतिक दशा में खाई जाने वाली खाने की चीज़ें जैसे साग-सब्जी, खीरा, ककड़ी आदि के साथ हमेशा बालू मिट्टी का कुछ भाग ज़रूर होता है, जिसे हम जानकारी ना होने के कारण गंवा देते है। ये बालू मिट्टी के कण हमारी भोजन पचाने की क्रिया को ठीक रखने मे मदद करते हैं।
क्या किसी ने सोचा है कि पहाड़ी झरनों के पानी को स्वास्थ्य के लिए अच्छा क्यों बताया जाता है? इस पानी को पीने से भूख ज़्यादा क्यों लगती है और पाचन क्रिया क्यों ठीक होती है? ये सब इसलिए होता है क्योंकि इस पानी में बालू मिट्टी के कुछ अंश मिले हुए होते हैं, जिन्हे पानी के साथ पिया जाता है। ये झरने जो पहाड़ों से बहकर आते हैं और अपने साथ बालू मिट्टी का ढेर लाते हैं, और ये पानी भोजन को पचाने वाले साबित होता है। बालू मिट्टी के अंदर छुतैल ज़हर को समाप्त करने की ताकत होती है। बालू मिट्टी प्रकृति की ओर से मानो संक्रमण को दूर करने वाली दवा का काम करती है। प्रयोगों द्वारा ये साबित हो चुका है कि बालू मिट्टी मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी है। जिस व्यक्ति को पेट के रोग जैसे - कब्ज, शौच खुलकर ना आना हो वो अगर खाना खाने के बाद ही एक चुटकी समुद्री बारीक बालू मिट्टी दिन में 2-3 बार निगल लें तो दूसरे दिन ही पेट की आंतें ढीली पड़ जाएगी और मल आसानी से निकलने लगेगा तथा आखिर में कब्ज भी दूर हो जाएगी।
मिट्टी के प्रयोग
मिट्टी के चिकित्सीय गुण
मिट्टी के अंदर ज़हर को खींच लेने की बहुत ज़्यादा ताकत है।
ये शरीर के अंदर के पुराने से पुराने मल को घुलाती है और बाहर निकालती है।
मिट्टी शरीर के ज़हरीले पदार्थों को बाहर खींच लेती है।
त्वचा के रोग जैसे फोड़े-फुंसी सूजन, दर्द आदि होने पर मिट्टी काफ़ी लाभकारी साबित होती है।
मिट्टी जलन, स्राव और तनाव आदि को समाप्त करती है।
शरीर की फ़ालतू गर्मी को मिट्टी खींचती है।
मिट्टी शरीर में जरूरी ठंडक पहुंचाती है।
मिट्टी बदबू और दर्द को दूर करने वाली है।
ये शरीर में चुम्बकीय ताकत देती है जिससे चुस्ती-फुर्ती और ताकत पैदा होती है।
मिट्टी के अलग-अलग प्रयोग
मिट्टी में सोना - मिट्टी में सोने से नींद ना आना, स्नायु की कमज़ोरी और ख़ून की ख़राबी जैसे रोग समाप्त हो जाते हैं।
मिट्टी की मालिश - मिट्टी को शरीर पर अच्छी तरह से मलने से और शरीर पर लगाने से ज़हरीले तत्व शरीर से बाहर निकल जाते हैं।
मिट्टी स्नान - साबुन की जगह शरीर पर मिट्टी लगाकर नहाने से हर तरह के रोगों में लाभ होता है।
मिट्टी पर नंगे पैर घूमना - मिट्टी पर नंगे पैर घूमने से गुर्दे के रोगों में आराम आता है, आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर को चुम्बकीय ताकत मिलती है।
मिट्टी की पट्टी - मिट्टी की पट्टी प्राकृतिक चिकित्सा में बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा बहुत से रोगों में इसका इस्तेमाल होता है। पेट के हर तरह के रोग में इसका बहुत ही ख़ास स्थान है। इसका इस्तेमाल पेड़ू, पेट, छाती, माथे, आंख, सिर, रीढ़ की हड्डी, गला, पांव, गुदा आदि जहाँ पर भी जरूरत पड़े कर सकते हैं।
मिट्टी की पट्टी बनाने की विधि - मिट्टी को बहुत अच्छी तरह से बारीक पीसकर और छानकर इस्तेमाल से 12 घंटे पहले भिगों दें। इस्तेमाल के समय जरूरत के मुताबिक एक बारीक सूती कपड़ा बिछाकर आधा इंच मोटी परत की मिट्टी की पट्टी को फैला दें। शरीर के जिस भाग पर मिट्टी की पट्टी लगानी हो इसे उलटकर लगा दें और ऊपर से किसी गर्म कपड़े से ढक दें। इस पट्टी के लगाने का समय ज़्यादा से ज़्यादा 20 से 30 मिनट तक होना चाहिए नहीं तो मिट्टी द्वारा खींचा गया ज़हर शरीर में दोबारा चला जाता है। जो मिट्टी एक बार इस्तेमाल कर ली गई हो उसे दोबारा इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
कुदरती उपचार - कुदरती उपचार का मतलब ये है कि कुदरत के बनाए हुए नियमों का पालन करना और कुदरत के तत्वों - पृथ्वी (मिट्टी), जल, सूर्य और वायु का ऐसे इस्तेमाल करना जिससे शरीर में जमा हुआ कूड़ा-करकट बाहर निकल जाए, शरीर शुद्ध बना रहे और शरीर के अंदर की चेतना शक्ति ताकतवर बनी रहे, शरीर के सभी रोग दूर हो और शरीर सही तरह से काम करता रहे।
पृथ्वी (मिट्टी) - मिट्टी में बहुत ज़्यादा मात्रा में जंतु मौजूद होते हैं। इसलिए गीली मिट्टी को पेट या शरीर के दूसरे हिस्सों पर रखने को कम ही कहा जाता है। हरा रस बनाते समय बची हुई चटनी या सीठी का इस्तेमाल मिट्टी की तरह कर सकते हैं। ऐसी सीठी आंख, पेट या चमड़ी के रोगों वाले हिस्सों पर रखी जा सकती है। उसके सूख जाने पर उसके ऊपर हरा रस छिड़क लें या दूसरी हरी सीठी अथवा चटनी रख लें। हरी सीठी रखने के बाद उस पर सूरज की धूप खाने से बहुत अच्छा नतीजा मिलता है। सफेद दाग, ल्युकोडर्मा, कोढ़ आदि रोगों में सीठी बहुत ही लाभकारी असर करती है।
विभिन्न रोगों में सहायक
फोड़ा :-- सूजन, फोड़ा, अंगुली की विषहरी (उंगुली में ज़हर चढ़ने पर) में गीली मिट्टी का लेप हर आधे घंटे तक बदलते रहने से लाभ होता हैं। फोड़ा बड़ा तथा कठोर हो, फूट न रहा हो तो उस पर गीली मिट्टी का लेप करें। इससे फोड़ा फूटकर मवाद बाहर आ जाती है। बाद में गीली मिट्टी की पट्टी बांधते रहें। मिट्टी की पट्टी या लेप रोग को बाहर खींच निकालता है। मुल्तानी मिट्टी या चिकनी मिट्टी को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर फोड़ों पर बांधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं।
कनफेड (कान के नीचे जलन होकर सूजन आ जाना) :-- कनफेड होने पर काली मिट्टी का लेप करने से लाभ होता है।
दांतों की मज़बूती :-- दांत हिलते हो, टूटने जैसे हो तो चिकनी मिट्टी (चाहे काली हो या लाल) को भिगोकर रोजाना सुबह-शाम मसूढ़ों पर मलने से दांत मज़बूत हो जाते हैं।
दांत के दर्द :-- साफ़ मिट्टी से रोजाना 3 बार मजंन करने से दांत दर्द ठीक हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह तक में रखें, फिर थूककर कुल्ले करें। इससे पायरिया व दांतों के रोगी को लाभ होगा। इस प्रयोग के समय मिठाई का सेवन न करें।
कब्ज :-- पेट पर गीला कपड़ा बिछायें। उस पर गीली मिट्टी का लेप करके मिट्टी बिछायें। इस पर फिर कपड़ा बांधे। रातभर इस तरह पेट पर गीली मिट्टी रखने से कब्ज दूर होगी। मल बंधा हुआ तथा साफ़ आयेगा।
सिर दर्द :-- गीली मिट्टी की पट्टी को सिर पर रखने से सिर दर्द दूर होता है।
बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर :-- बिच्छू, बर्र (ततैयां) काटने पर गीली मिट्टी की पट्टी बांधने से आराम आता है।
ज्वर (बुखार) :-- गीली मिट्टी की पट्टी पेट पर बांधें, हर घंटे में बदलते रहें। इससे बुखार की जलन दूर हो जायेगी।
प्लीहा वृद्धि (तिल्ली) :-- 1 महीने तक गीली मिट्टी पेट पर लगाने से तिल्ली का बढ़ना बंद हो जाता है।
रोग-निरोधक :-- आमतौर पर लोग बच्चों को एकदम साफ़ माहौल में रखते हैं और गलियों की धूल से बचाकर रखते हैं, जोकि समझदारी नहीं है क्योंकि धूल में पाये जाने वाले कई लाभदायक बैक्टीरिया बच्चों को कुछ रोगों से बचाने में उनकी मदद करते हैं। माताएं अपने बच्चों को धूल-मिट्टी के कणों से बचाकर रखती है। ऐसे रहने वाले बच्चे आगे चलकर एलर्जी व अस्थमा जैसे रोगों से पीड़ित हो जाते हैं।
नकसीर :-- रात को मिट्टी के बर्तन में आधा किलो पानी मिलाकर उसमें 10 ग्राम मुल्तानी मिट्टी भिगो दें। सुबह इस पानी को छानकर पीने से कुछ ही दिनों में सालों की पुरानी नकसीर ठीक हो जाती है। 1 गिलास पानी में रात को 5 चम्मच मुल्तानी मिट्टी भिगोकर सुबह पानी छानकर पियें तथा नाक पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करें। इससे नाक से ख़ून बहना बंद हो जाता है।
पायरिया :-- साफ़ मिट्टी को पानी में भिगोकर कुछ समय मुंह में रखकर फिर थूककर कुल्ला करें। इससे पायरिया रोग खत्म हो जाता है।
गठिया रोग :-- जब घुटनों में दर्द हो तो रात को मिट्टी की पट्टी बांधकर पानी के भाप से घुटने की सिंकाई करें। इससे रोगी को लाभ मिलता है।
चेहरे की सुन्दरता :-- 1 बड़ा चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 3 बड़े चम्मच दही, 1 चम्मच चाय और शहद मिलाकर लेप बना लें। इस लेप को चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा की गहरी सफाई करता है और त्वचा के बंद रोमकूपों को भी खोलता है जिससे त्वचा की ख़ूबसूरती बढ़ती है। एक टुकड़ा मुल्तानी मिट्टी का लेकर बहुत ही बारीक पीसकर उसका पाउडर बना लें। फिर इस पाउडर में इतना पानी मिला लें कि इस पाउडर की लुगदी (लेप) बन जाए। अब इस लेप को चेहरे पर 15 मिनट तक लगाकर सूखने दें। फिर 15 मिनट के बाद इसे गुनगुने पानी से धो लें। यह प्रयोग सप्ताह में 2 बार करने से चेहरे पर ताजगी छाई रहती है। 1 बड़े चम्मच मुल्तानी मिट्टी में 3 बड़े चम्मच सन्तरे का रस मिलाकर चेहरे पर लगायें। यह लेप त्वचा के दाग-धब्बों को दूर करने में बहुत ही लाभकारी है। इससे त्वचा में जो तैलीयपन होता है वह दूर होता है।
विसर्प-फुंसियों का दल बनना :-- मुल्तानी मिट्टी को भिगोकर पीस लें और इसमें कपूर मिलाकर शरीर पर लेप करें। फिर 1 घंटे के बाद नहा लें। इससे फुंसियों में बहुत ही लाभ होता है।
घमौरियां होने पर :-- शरीर पर मुल्तानी मिट्टी का लेप करने से घमौरियां मिट जाती हैं।
रंग को निखारने के लिए :-- 4 चम्मच मुल्तानी मिट्टी, 2 चम्मच शहद, 2 चम्मच दही और 1 चम्मच नींबू के रस को एक साथ मिलाकर चेहरे पर लगायें और आधे घंटे के बाद हल्के गर्म पानी से चेहरे को धो लें। फिर एक बर्फ़ का टुकड़ा लेकर पूरे चेहरे पर रगड़ लें। ऐसा करने से चेहरे का रंग साफ़ होता है।
बच्चों की नाभि की सूजन :-- मिट्टी के ढेले को आग में गर्म करके दूध में बुझा लें फिर उससे नाभि की गर्म-गर्म सिकाई करें। इससे बच्चों की नाभि की सूजन´ दूर हो जाती है।
नाभि रोग (नाभि का पकना) :-- पीली मिट्टी को तेज आग पर गर्म करने के बाद ठण्डा कर लें। उसके बाद उसे दूध में घिसकर बच्चे की नाभि पर लेप करें। इससे नाभि का दर्द ठीक हो जाता है।
कण्ठमाला :-- मिट्टी के तेल की थोड़ी सी बूंदे बताशे में डालकर छोटे बच्चे को 2 बूंद, 8 से 12 साल तक के बच्चे को 3 बूंदे और 12 साल से ज़्यादा के बच्चे को 4 बूंद खिलाने से कुछ ही दिनों में कण्ठमाला (गले की गांठे) समाप्त हो जाती हैं।